दाग़ अच्छे हैं। हम लड़कियों के ज़िंदगी के कुछ ऐसे डायलॉग हैं ना जिनसे सारी लड़कियां रूबरू होंगी - • अच्छा सुन ना! मैं ना आगे चल कर जाऊंगी, ज़रा पीछे देखना - दाग़ तो नहीं लगा!? • अरे यार!! ये हमेशा व्हाइट यूनिफॉर्म में क्यों होता हैं। • अरे सुन ना!! दाग़ लग गया यार, ज़रा कवर कर के वॉशरूम तक ले चल ना।। क्यों? हैं ना लड़कियां इनसे रूबरू!! प्रॉब्लम यही से तो शुरू होती हैं - जब हम वो बातें छुपाने लगते हैं जो करना सबसे जरूरी हैं। जब हमें उससे शर्मिंदगी होने लगती हैं जो की एक वरदान हैं, जो की बिलकुल आम है और खास हैं। कितना अजीब हैं ना - 14 की उम्र में खून कपड़ों पर दिख जाए तो पाप, और वहीं 21 की उम्र में उस सुहागरात की सफेद चादर पर लग जाए तो पुण्य।। ना मंदिर में तुम जाना, ना आचार को हाथ लगाना। आज सबसे अलग कही सो जाओ, ना साथ में खाना खाना।। दर्द हो रहा? सह लो ना। लड़की हो सहना सीखो! तकलीफ कितनी भी हो, खुद ही खुद में रहना सिखो।। PAD. मतलब ये तो ऐसी चीज़ हैं ना जो लोगो को सरेआम खरीदने में शर्म आती है, जैसे ड्रग डीलिंग करने आए हो, ऐसी पैकिंग की जाती हैं। मतलब न्यूज़पेपर से कवर फिर प्लास्टिक वो भी ब्लैक!! एक तो नाम भी देखो - WHISPER. ज़ोर से मत बोलना भाई!! नहीं मतलब मेरा इसपर केस कर कंपनसेशन नहीं लेना! लेकिन फिर भी व्हिस्पर क्यों जब ये नॉर्मल हैं!? तुम दुर्गा हो तुम काली हो, पर मंदिर में तुम जा नहीं सकती। तुम अन्नपूर्णा की देवी हो, पर सबके साथ खा नहीं सकती। तुम सबको प्यार बाटती हो, पर महीने के उन 4 -5 दिन तुम प्यार पा नहीं सकती। सबके दर्द में तुम साथ रहती, और अपने दर्द में चिल्ला भी नहीं सकती।। हम अगर खुलेआम सेक्स एजुकेशन या पीरियड्स संबंधित बातें करे तो हम बेशर्म कहलाए, हां भाई!! ये जरूरी कहा?? जरूरी तो ये है ना, की कल किसी के रेप या मरने के बाद कितनी मोमबत्तियां जलाए!? मुझे समझ नही आता की इससे दिक्कत कैसे होती लोगो को, ये कितना खूबसूरत एहसास है, हां दर्द होता! पर खूबसूरत तो है।। मैं एक लड़की हूं, हर महीने पीरियड्स होते हैं मेरे, और मुझे कोई शर्म नही इसके बारे में बात करने में, मुझे कोई शर्म नही एक पैड का पैकेट बिना कवर के लेने में। मैं एक लड़की हूं, और मुझे गर्व हैं - खुद पर, पीरियड्स पर, जो की नॉर्मल हैं। क्योंकि ये दाग़ तो अच्छे हैं।।