नज़्म
तेरी याद आये !
मुझे शाम ढलते तेरी याद आये
लबों पे फ़क़त एक फ़रियाद आये
ये हमने गुज़ारिश करी है खुदा से
न जीवन में कोई तेरे बाद आये
तुम्हे पा के ठंडक कलेजे में होगी
न आलम जुदाई का बर्बाद आये
ये मानो न मानो “जतन” तो कहेगा
बन के कोई तुम हो सौगात आये
मंजिल मेरे शख्शियत की थी हिलती
तुम उसमें बन कर के बुनियाद आये
मेरी हस्ती का तर्जुमा तो कठिन था
उसमें हो तुम बन के अनुवाद आये
शायर
अश्वनी कुमार “जतन”
प्रयागराज, उत्तर प्रदेश
(भारत)