मैं हैरान हूं,
मैं इंसान हूं,
क्या होती है इंसानियत जानने को बेताब हूं,
ढूंढता हूं इंसानियत मिलने को बेकरार हूं,।
मैं हैरान हूं,
मैं इंसान हूं,
मिली नहीं कहीं इंसानियत मैं हैरान हूं,
जो मिल जाए कहीं इंसानियत नतमस्तक होने को तैयार हूं,
मैं हैरान हूं,
मैं इंसान हूं,
इंसान के इस शहर में कभी देखी नहीं इंसानियत,
भावशून्य इस दुनिया ने कभी समझी नहीं इंसानियत,
मैं हैरान हूं,
मैं इंसान हूं,
यहां भावनाओं की कोई कदर नहीं, भावहीन हर इंसान है,
लगता है जैसे इंसानों के इस शहर में बसा पूरा कब्रिस्तान है,
मैं हैरान हूं,
मैं इंसान हूं।
- प्रदीप कुमार शर्मा